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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 25 मार्च 2018

रामनवमी पर विशेष --- -----राम की राजनीति--- डा श्याम गुप्त...

                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 

रामनवमी पर विशेष ---
-------------------------
राम की राजनीति---

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---- आज राम राजनीति के केंद्र तो हैं परन्तु राम की राजनीति राजनैतिक केंद्र से दूर है | राम का चरित्र, उनकी कार्यशैली व कृतित्व, चाहे वे राजमहल में हों या वनवास में, ही उनकी राजनीति है |
------दृढ़ निश्चय, गुरुजनों से मंत्रणा, समाज के जन जन ..बड़े से लेकर छोटे से छोटे तक का दुःख हरण, उचित क्रियाशैली व नीति निर्धारण , सभी का उचित सहयोग ,कठोर परिश्रम जन जन का उत्थान व शिक्षा ही रामराज्य की नींव है---
--------मेरे काव्य उपन्यास, शूर्पणखा खंडकाव्य से राम की राजनीति के कुछ दृश्य प्रस्तुत हैं ----
सर्ग-४.मंत्रणा
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९-
ऋषि-मुनि गण एवं वनचारी,
सबको प्रभु ने आश्वस्त किया|
अत्याचार न होगा कोई,
जो अब तक होता आया है |
कोई मख विध्वंस न होगा,
कुटिया का भी ध्वंस न होगा३ ||
१०-
धनुष वाण है हाथ राम के,
परम वीर सौमित्र यहाँ हैं |
आ न सकेंगे इधर ,निशाचर,
करें सभी निर्भय होकर के;
यज्ञादिक शुभ कर्म सभी फिर,
उठे सुवासित धूम गगन में४ ||
११-
ऋषि-प्रणीत जीवन धारा की५ ,
सुरसरि फिर से बहे, धरा पर |
निशाचरी माया नगरी की,
हवा नहीं इस ओर बढ़ेगी |
मर्यादा की मलयज शीतल ,
बहे समीर पुनः हर ओर ||
सर्ग ५...पंचवटी
===============
३-
मुनि अगस्त्य से बोले रघुवर,
तात ! आपका ज्ञान व अनुभव;
एवं कठिन कर्म और ब्रत का,
सारे जग में यश फैला है |
यह भूभाग आपके कारण,
ज्ञान-वान, समृद्ध हुआ है ||
४-
उचित मन्त्र दें, वही करूँ में ,
जिससे प्रिय हो आप सभी का |
हो उद्देश्य पूर्ण, मेरा भी,
नाश करूँ सब दैत्य वंश का |
लक्ष्मण समझ रहे थे अब कुछ,
नमन किया प्रभु की लीला को ||
५-
ऋषिवर, इस दक्षिण अंचल के,
कण कण का है ज्ञान आपको;
रहना उचित कहाँ पर होगा ?
पाप घड़ा भर चुका दैत्य का,
अब विलम्ब का काम नहीं है;
यह संधान कहाँ से होगा ||
६-
१२-
पंचवटी अति सुन्दर पावन,
धाम है, 'दंडक-वन'३ में रघुवर |
रहें वहां पर पर्णकुटी४ कर,
मिट जाएँ कलुष-दोष वन के |
दंडक वन होजाए पावन ,
ऋषि-मुनि विचरें निर्भय होकर ||
१३-
अधिग्रहण किया जो दैत्यों ने,
वह जनस्थान५ भी निकट रहे |
आते-जाते निशिचर, दुष्टों,
की बातों का भी पता चले |
उस रावण के अधिकृत प्रदेश-
से, दुष्ट-दैत्य, आते रहते ||
१४-
सूचना व अवसर पाने का,
है उचित क्षेत्र यह दंडक वन |
थर्राया है जो, असुरों के -
अति अत्याचारी कृत्यों से |
रह पंचवटी६ में राम, करो-
तुम दुष्टों का अब शीघ्र दलन ||
१५-
दिव्यास्त्र अनेक दिए ऋषि ने,
फिर बोले-तुम तो राम स्वयं ,
हो संचालन संधान कुशल |
जाने कितने ही दिव्य अस्त्र,
प्रभु तरकश में शोभायमान ;
है शस्त्रों की शोभा तुमसे ||
१६-
अस्त्रों से सिर्फ नहीं कोइ,
मानव शोभा पाजाता है |
शस्त्रों को रख निज साथ नहीं,
वह परमवीर बन जाता है |
मिल जाएँ यदि अपात्र को तो,
इन की महिमा घट जाती है ||
१७-
दृढ -इच्छा, साहस, कर्मठता,
नैतिक बल, अस्त्र है बीरों का|
तुम ग्रहण करो हे राम! बढे,
इन शस्त्रों की शोभा तुमसे |
सह न सकेगा रिपु कोई,
वर्षा अब राम के तीरों की || ----
१९-
दंडक वन में पहुंचे रघुवर,
मिले जटायू गृद्धराज वर |
मित्र, पिता दशरथ के थे,प्रिय,
सादर वंदन किया सभी ने |
कुशलक्षेम कौशलपति की वे,
लगे पूछने,भाव-विह्वल हो ||
२१-
फिर विस्तार सहित घटनाक्रम,
कारण अपने विपिन-वास का;
रघुवर ने उनको बतलाया |
किया निवेदन, तात ! आप भी,
बनें सहायक धर्म कार्य हित;
उचित मंत्रणा दें हम सबको ||
२२-
आशीर्वाद सदा है मेरा,
राम,बनो तुम खलु-दल भंजक|
मेरा मेरे दल-बल१ का भी,
सदा पूर्ण सहयोग रहेगा |
पूरा हो उद्देश्य राम का,
पापमुक्त हो अब यह अंचल ||
२३-
वनचर, बनवासी अरण्य के ,
हैं अति त्रस्त अनाचारों से |
ज्ञान-धर्म,जन-नीति सभी कुछ,
कलुषित हैं; दूषित भावों के -
अति प्रचार एवं प्रसार से २ ,
है प्रमाद ने किया बसेरा ||
२४-
अकर्मण्यता, प्रमाद व लिप्सा,
भोग-भाव औ असत कर्म से ;
ध्वस्त हो गईं रीति-नीति सब,
ध्वस्त हुई है अर्थव्यवस्था |
दीन-हीन हो पिछड़े सबसे,
भोग रहे निज कर्मों का फल ||
२५-
यदि हो साथ राम का पौरुष,
भक्ति-शक्ति सौमित्र के जैसी;
सीता सी प्रभु प्रीति-रीति हो,
सोने में होजाय सुहागा |
बिना भक्ति और ईश कृपा के,
किसको भला विवेक हुआ है ||
२६-
युग-शिक्षा नव ज्ञान-रश्मि से,
नव-प्रकाश फैलाना होगा |
कला शिल्प साहित्य आदि का,
जन मन भाव जगाना होगा |
स्वतंत्रता स्व -भाव आदि भी,
जगें, सभी के अंतर्मन में ||
२७-
हर, प्रमाद अज्ञान अयोग्यता ,
सब विधि योग्य बनाएं सबको |
नहीं योग्यता की कोई भी,
कमी किसी में भी रह जाए |
ज्ञान कुशलता और योग्यता,
से न करें कोई समझौता ३ ||
२८-
स्त्री-शिक्षा पर सब विधि से,
कुछ ध्यान अधिक देना होगा |
शिक्षित नारी ही है राघव!
उन्नायक अगली पीढी की |
सक्षम है वही रोकने में,
जाने से असत मार्ग नर को ||
२९-
विदुषी, शिक्षित और साक्षर,
नारी ही आधार है सदा ;
हर समाज की, नर जीवन की |
वही समय पड़ने पर , नर से-
कदम मिलाकर चल सकती है४ |
जीवन करती सुन्दर -समतल ||
३०-
चाहे जितनी भीड़ साथ हो,
यदि अयोग्य हो, काम न आये |
पूर्ण योग्यता ज्ञान के बिना ,
कोई कार्य पूर्ण कब होता |
तप संयम कठोर अनुशासन,
से ही पूर्ण योग्यता मिलती ||
३१-
पिछड़े दीन-हीन या ज्ञानी,
सबको साथ लिए चलना है |
अस्त्र-शस्त्र निर्माण कर्म और -
लड़ने योग्य बनाएं सबको |
आतातायी के विरोध का,
स्वर, जन जन में उठे ज्वार बन ||
३२-
नए नए अस्त्रों शस्त्रों का,
संचालन भी सिखलाना है |
जन-जन, मन से महायज्ञ में,
दे सहयोग, बताना है यह |
हर घर में हे राम! ज्ञान का,
एक-एक दीपक जल जाए ||
३३-
अक्रियता अज्ञान और भय,
हट जाए जन जन में मन से |
अपनी स्वयं की अर्थव्यवस्था,
से यह वन समृद्ध बन सके |
कर्म-चेतना से यह अंचल,
सक्रिय सबल, संबल बन जाए ||
३४-
जन जन का बल, युद्ध काल में,
सबसे बड़ा शस्त्र५ होता है |
राघव ! सब से बड़ी सुरक्षा-
शक्ति, योग्य जन-बल होता है |
उचित समय पर दंडक वन क्या-
जन स्थान भी साथ खडा हो ||-----सर्ग ५...पंचवटी
१८-
देश की रक्षा, संस्कृति रक्षण ,
तथा प्रजा के व्यापक हित में ;
अधर्मियों से विधर्मियों से,
अन्यायी लोलुप जन जो हों ;
कभी नहीं समझौता करता ,
वही नृपति अच्छा शासक है ||
१९-
पर जो शासक निज सुख के हित,
अत्याचार प्रजा पर करता |
अधर्म-मय, अन्याय कर्म से ;
अपराधों को प्रश्रय देता |
अप विचार, अपकर्म भाव में,
जन जन पाप-लिप्त हो जाता ||
२०-
हिंसा चोरी अनृत भावना,
नर-नारी को भाने लगती|
अश्लील कृत्यों से नारी,
अपने को कृत-कृत्य समझती |
लूट अपहरण बलात्कार के,
विविध रूप अपनाए जाते ||
२१-
अति भौतिक सुख लिप्त हुए नर,
मद्यपान आदिक विषयों रत;
कपट झूठ छल और दुष्टता,
के भावों को प्रश्रय देते |
भ्रष्टाचार, आतंकवाद में,
राष्ट्र, समाज लिप्त हो जाता ||
२२-
पाप, अधर्म-नीति कृत्यों से,
प्रकृति माता विचलित होती |
अनावृष्टि अतिवृष्टि आदि से,
धरती की उर्वरता घटती |
कमी धान्य-धन की होने से,
बनती है अकाल की स्थिति ||
२४-
लक्ष्मण,तुम अब जान चुके हो,
मूल उद्देश्य, वनागमन का |
नाश राक्षसों का करना है ,
स्थिर करना है फिर हमको;
शास्त्र धर्म शुचि मर्यादाएं ,
ऋषि प्रणीत जीवन शैली की ||
२५-
इस अंचल के पिछड़े पन को,
हमको दूर हटाना होगा |
शिक्षा देकर के जन जन का,
जीवन सुलभ बनाना होगा |
विविध शिल्प औ शस्त्र कला का,
उन्हें कराना होगा ज्ञान ||
२६-
दुखी असंगठित एवं पिछड़ी,
प्रजा रहे, वह राजा ही क्या |
एसे किसी राज्य का लक्ष्मण,
राजा बन कर भी क्या करना |
शिक्षित सुखी संतुष्ट प्रजा ही,
उन्नत सिर हैं राजाओं के ||
२७-
शिक्षित सज्जन सुकृत संगठित,
बनें क्रान्ति में स्वयं सहायक ;
लक्ष्मण सदा सफल होती वह |
पर असंयमित हो जाती है,
भीड़ अशिक्षित हो, असंगठित;
भय विघटन,प्रति-क्रान्ति का रहता ||
२८-
आताताई के विरोध में,
जन संकुल को लाना होगा |
जन जन ज्वार समर्थन से ही ,
मिल पायेगी विजय युद्ध में |
बड़ी बड़ी सेनाओं से भी,
नहीं कार्य यह सध पाता है ||
२९-
यदि मैं सेना लेकर आता,
प्रतिपग मग पर विरोध होता |
राज्य प्रसार लालसा का भी,
कौशल पर आक्षेप ठहरता |
सतर्क होजाते राक्षस -कुल,
पूरी तैयारी से पहले ||
३०-
लक्ष्मण हमको इसी भूमि की ,
मिट्टी से हैं वीर उगाने |
आतंक और अन्याय भाव से,
लड़ने के हैं भाव जगाने |
ताकि लौटने पर हम सबके,
वे हों स्वयं कुशल निजहित में ||
३१-
शीश नवा कर लक्ष्मण बोले-
राम नाम की महिमा से प्रभु,
मिट्टी भी सोना होजाती |
इच्छा है जब स्वयं राम की,
सोती धरती जाग उठेगी ;
आज्ञा दें अब क्या करना है ||
३२-
सभा, प्रबंधन और निरीक्षण ,
ऋषि-मुनियों संग विविधि गोष्ठियों ;
के आयोजन, कार्यान्वन का,
सारा भार लिया रघुवर ने |
नारी-वालक शिक्षा का और-
जन जागरण१ भार सीता ने ||
३३-
गृह निर्माण व युद्ध कला में-
विशेषग्य ,सौमित्र को मिला ;
भार प्रोद्योगिकी -शिक्षा एवं-
आयुध की निर्माण कला का |
एवं संचालन -कौशल को ,
जन जन में प्रसार करने का ||
३४-
लिखना पढ़ना व सद-आचरण,
महिलाओं बच्चों को, सबको;
अपनी कुटिया के कुंजों की,
छाया में वे जनक-नंदिनी;
आदर प्रेम से सिखलाती थीं,
दीप, दीप से जलता जाता२ ||
३५-
लक्ष्मण लगे सिखाने सब को,
धनुष बनाना, वाण चलाना |
शस्त्रों के निर्माण-ज्ञान सब,
शर-संधान व उचित निशाना |
धनुष-वाण, तरकश सब आयुध,
बनने लगे, हर कुटी वन में ||
३६-
सुन्दर सुद्रिड और सुरक्षित,
कुटिया-गृह निर्माण शिल्प का;
ज्ञान कराते थे रामानुज |
विविध शिल्प व श्रम की महत्ता -
उपयोगिता, दिखाते रहते;
हो स्वतंत्र निज अर्थ-व्यवस्था३ ||
३७-
ईश्वर महिमा, भजन-साधना,
लोक-कला, साहित्य-भावना;
चित्रकला, संगीत ज्ञान, सब-
बाल, वृद्ध, स्त्री-पुरुषों को ,
सिय-रामानुज लगे सिखाने ;
यह अंचल अब जाग रहा था ||
३८-
वन संपदा का रक्षण-वितरण,
विविधि भाँति फल-फूल उगाना |
नव-पद्दतियां, कृषि कर्मों४ की ,
सिखलाई जातीं कुटियों में |
वन व ग्राम की कला-कथाएं ,
सीखते व सुनते सिय-लक्ष्मण ||
३९-
योग भक्ति अध्यात्म ज्ञान का,
विविधि भांति की नीति-कथाओं ;
के ,कहने सुनने समझाने,
का क्रम स्वयं राम करते थे |
प्रातः सायं , प्रार्थना सभा में,
ऋषि-मुनियों का प्रवचन होता ||
४०-
रक्षा में, सौमित्र -गुणाकर,
किये नियोजित थे रघुवर ने |
पंचवटी का आसमान था,
यज्ञ -धूम से हुआ सुवासित |
कर्मठता से रामानुज की,
वन-उपांत५ थे अभय होगये ||
सप्तम सर्ग -संदेश
==============
२८-
नारी, केंद्र-बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अवध्य है ,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे ||
२९-
नारी के निषेध-नियमन ही,
पावनता के संचारण की;
उचित निरंतरता समाज में,
सदा बनाए रखते, लक्ष्मण !
अवमानना, रेख-उल्लंघन,
कारण बनते, दुराचरण का ||
३०-
राजा जनता या प्रबुद्ध जन,
जब अपने दायित्व भूलकर;
उचित दंड यदि नहीं देते |
अनाचार को प्रश्रय देकर,
पाप-कर्म में भागी बनते;
नियम से नहीं ऊपर कोई ||
३३-
विविध कारणों से यदि नारी,
मर्यादा उल्लंघन करती |
दुष्ट भाव, स्वच्छंद आचरण,
से समाज दूषित होजाता |
कई पीढ़ियों तक फिर लक्ष्मण,
यह दुष्चक्र चलता रहता है ||
३४-
जब उद्दंड, रूप-ज्वाला युत,
और दुर्दम्य काम-पिपासा-
युक्त ताड़का१ से कौशिक का ;
तेज, तपस्या-बल गलता था ,
अत्याचार, अनीति मिटाने;
उसका भी बध किया गया था ||
३५-
शूर्पणखा का दंड हे अनुज !
सिर्फ व्यक्ति को दंड नहीं है |
चारित्रिक धर्मोपदेश है,
नारी व सम्पूर्ण राष्ट्र को |
चेतावनि है दुष्ट जनों को ,
कुकर्म-रत नारी-पुरुषों को ||
४२-
परम प्रिया राजा दशरथ की,
राज्यकर्म और राजनीति पर;
उचित मंत्रणा देने वाली |
देव कार्य, इस महायज्ञ में,
वही आहुती दे सकती थी ;
अपने प्रेम,त्याग, महिमा की ||
४३-
विश्वामित्र-वशिष्ठ योजना४ ,
निशिचर-हीन मही करने की ;
कैकयि माँ ही केंद्र बिंदु है |
शिव की भाँति, गरल पी डाला,
सहमत कब थे राजा दशरथ ||
४४-
सेना से यह कार्य न होता५ ,
कोइ अन्य उपाय कहाँ था |
राक्षस-अपसंस्कृति विनाश का ,
ध्वजा धर्म की फहराने का |
जन जन हित में,विज्ञ जनों को,
सदा गरल यह पीना होगा || ----सप्तम सर्ग -संदेश
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