ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 9 मई 2018

भारत में वर्ण व्यवस्था व जाति प्रथा की कट्टरता -एक ऐतिहासिक आईना -–भाग दो--वैदिक धर्म में कुरीतिया कैसे आईं डा श्यामगुप्त

                                     ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



     भारत में वर्ण व्यवस्था व जाति प्रथा की कट्टरता -एक ऐतिहासिक आईना -–डा श्यामगुप्त
 
 


             भाग-दो---- वैदिक धर्म में कुरीतिया कैसे आईं

      == मुस्लिम व योरोपियन आक्रान्ताओं के आने से पहले की भारतीय स्थिति ==

       इस समय तक हिन्दू, वैदिक धर्म का पालन करते हुए, हवन यज्ञों द्वारा निर्गुण तथा निराकार परमेश्वर की पूजा किया करते थे | ध्यातव्य है कि मनु स्मृति इस काल से बहुत पहले  लिखी गयी थी जब निराकार ईश्वर को पूजा जाता था ।
      चातुर्वर्ण्य ---मुख से ब्राह्मण पैदा हुए थे मनु का सांकेतिक तात्पर्य था कि सुवचन और सुबुद्धि के गुणों के द्वारा ब्राह्मणो का जन्म हुआ। यह सांकेतिक तात्पर्य था कि भुजाओं के बल के द्योतक क्षत्रिय बने। और यही सांकेतिक तात्पर्य था कि जीविकोपार्जन के कर्मो से वैश्यों का जन्म हुआ और श्रम का काम करने वाले चरणो से शूद्रों का जन्म हुआ। या जिनमे ये गुण जैसे हैं वे उन वर्णों में गुणों और कर्मों के आधार पर विभाजित किये जाएँ।

    चन्द्रगुप्त मौर्य (340 BC -298 BC) ,---"मुद्राराक्षस" में उसे कुलविहीन बताया गया है। यदि उस समय वर्णव्यवस्था थी तो वह उसे तोड़ते हुए अपने समय का एक शक्तिशाली राजा बना। इसी समय "सेल्यूकस" के दूत "मैगस्थनीज़" के यात्रा वृतांत के अनुसार उस समय इसी चतुर्वर्ण में ही कई जातियाँ 1) दार्शनिक 2) कृषि 3)सैनिक 4) निरीक्षक /पर्यवेक्षक 5) पार्षद 6) कर निर्धारक 7) चरवाहे 8) सफाई कर्मचारी और 9 ) कारीगर हुआ करते थे।  
        चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र एवं नीतिसार अनुसार, किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार की कठोर सज़ा थी।  यूं तो  उस समय दास प्रथा नहीं थी लेकिन चाणक्य के अनुसार यदि किसी को मजबूरी में खुद दास बनना पड़े तो भी उससे कोई नीच अथवा अधर्म का कार्य नहीं करवाया जा सकता था। सब अपना व्यवसाय चयन करने के लिए स्वतंत्र थे तथा उनसे यह अपेक्षा की जाती थी वे धर्मानुसार उनका निष्पादन करेंगे ।
 -------------मौर्य वंश के इतिहास में कहीं भी शूद्रों के साथ अमानवीय या भेदभावपूर्ण व्यवहार का लेखन पढ़ने में नहीं आया। जब दासों के प्रति इतनी न्यायोचित व्यवस्था थी, तो आम जन तो नीतिशास्त्रों से शासित किये ही जाते थे।
-------------इस समय तक अधिकांश लोग वैदिक भागवत धर्म का पालन करते थे |-------

     चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य   ---भारतवर्ष का स्वर्ण काल ----   चन्द्रगुप्त मौर्य के लगभग 800 वर्ष पश्चात चीनी तीर्थयात्री "फाहियान" चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय भारत आया उसके अनुसार वर्णव्यवस्था बहुत कठोर नहीं  थी, ब्राह्मण व्यापर ,वास्तुकला तथा अन्य प्रकार की सेवाएं दिया करते थे ,क्षत्रिय वणिजियक एवं औद्योगिक कार्य किया करते थे ,वैश्य राजा ही थे ,शूद्र तथा वैश्य व्यापार तथा खेती करते थे। कसाई, शिकारी ,मच्छली पकड़ने वाले, माँसाहार करने वाले अछूत समझे जाते थे तथा "वे" नगर के बाहर रहते थे। गंभीर अपराध न के बराबर थे, अधिकांश लोग शाकाहारी थे।
          "हुएंनत्सांग "ने वर्ष 631-644 AD तक अपने भारत भ्रमण के दौरान जो देखा उसके  अनुसार, उस समय विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध नहीं था, सती प्रथा नहीं थी,  पर्दा प्रथा नहीं थी ,  दास प्रथा नहीं थी,  हिजड़े नहीं बनाये जाते थे,  जौहर प्रथा नहीं थी, ठगी गिरोह नहीं हुआ करते थे, क़त्ल-बलात्कार नहीं हुआ करते थे, सभी वर्ण आपस में बहुत सौहाद्रपूर्ण तरीके से रहते थे वर्ण व्यवस्था इतनी कट्टर नहीं थी। यह भारत का स्वर्णकाल कहलाता है।

=== फिर ये सारी कुरीतियां वैदिक धर्म में कहाँ से आ गयीं। यह एक यक्ष-प्रश्न है ?----  

  इसी स्वर्णकाल के समय  लगभग वर्ष 500 AD के आस-पास इसके जो ------
==(अ )तीन विशेष कारण-- जिनकी वजह से वैदिक धर्म का लचीलापन खत्म होना शुरू हुआ, और कुरीतियाँ पनपने लगीं हमारे विचार से वे हैं ----
--- बौद्ध तथा जैन धर्मों का उदय---  जो वैदिक धर्म के विरुद्ध नास्तिक धर्म थे | उनके  प्रवर्तकों द्वारा बुद्ध व महावीर आदि की  सुन्दर सुन्दर मूर्तियों की पूजा की देखा देखी वैदिक धर्म में मूर्तिपूजा का प्रार्दुभाव हुआ। इसी समय भगवानों के सुन्दर सुन्दर रूपों की कल्पना कर के उन्हें मंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाने लगा।
          बौद्ध धर्म में "वज्रयान" सम्प्रदाय के भिक्षु एवं भिक्षुणियों ने अश्लीलता फैलाई तथा बौद्धों द्वारा वेद शिक्षा बिल्कुल नकार दी गई |
२.-"चार्वाक " सिद्धांत का प्रसार - पंच मकार - मांस, मछली, मद्य, मुद्रा और मैथुन को ही जीवन का सार मानने लगना एवं उनका जनसाधारण में लोकप्रिय होना।
३. हूणों के आक्रमण --मध्य एशिया से जाहिल हूणों के आक्रमण तथा उनका भारतीय समाज में घुलना मिलना |

== (ब) अन्यकारण----

१. तोड़ मरोड़ कर पढ़ाया गया इतिहास-- जो इतिहास हमें पढ़ाया गया है उसमे सोमनाथ के मंदिर को लूटना तो बताया गया है परन्तु—तमाम विविध कारणों को नहीं बताया गया है |  वर्णव्यवस्था में विद्रूपता और कट्टरपन क्यों कब और कैसे आया, कभी हिंदुत्व के विरोधी एवं विदेशी नक़्शे कदम के पूजक वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास के इतर कुछ पढ़ने/पढाने की कोशिश की नहीं गयी  | जो और जितना पढ़ा/पढ़ाया गया उसी को सबकुछ  मान कर भेड़चाल में हम धर्मग्रंथों और उच्च जातियों को गलियां  देने लगे ।

      जवाहरलाल नेहरू की तथाकथित प्रसिद्द पुस्तक Glimpses of World History के सन्दर्भ में नेहरू और वामपंथियों पर भारतीय मूल के ब्रिटेन में रहने वाले प्रख्यात लेखक --V.S Naipaul ने कटाक्ष करते हुए "The Pioneer" समाचार पत्र में एक लेख लिखा था ---- " आप अपने इतिहास को नज़रअंदाज़ कैसे कर सकते हैं ?  स्वराज और आज़ादी की लड़ाई ने इसे नज़रअंदाज़ किया है।‘  इस पुस्तक में लेखक  भारतीय पौराणिक कथाओं के बारे में बताते बताते आक्रान्ताओं के आक्रमण पर पहुँच जाता है। फिर चीन से आये हुए तीर्थयात्री बिहार नालंदा और अनेकों जगह पहुँच जाते हैं। पर लेखक ( पं.नेहरू ) यह नहीं बताते कि फिर क्या हुआ | आज अनेकों जगह, जहाँ का गौरवपूर्ण इतिहास था खंडहर क्यों हैं ? वे यह नहीं बताते कि भुबनेश्वर, काशी और मथुरा को कैसे अपवित्र किया गया।
----महमूद ग़ज़नवी ने कंधार के रास्ते आते और जाते हुए मृत्यु का जो तांडव किया, कभी नहीं बताया जाता। ------
------उसमे 1206 के मोहम्मद गौरी से लेकर 1857 तक के बहादुर शाह ज़फर का अधूरा चित्रण ही किया गया है, पूरा सच शायद बताने से मुस्लिम वर्ग नाराज़ हो जाता।
२.फूट डालो राज करो कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण-------- लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं ने यही रणनीति बनायीं थी कि हिन्दुओं में फूट डाली जाये और मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया जाये।
-------इसी का आज यह दुष्परिणाम है की न तो मुस्लिम आक्रान्ताओं का पूरा इतिहास ही पढ़ाया गया और आज हिन्दू पूरी जानकारी के आभाव में वर्णव्यवस्था के नाम पर आपस में ही भिड़ जाते हैं।

३.भारत की जनसंख्या का घटना व उसके कारण ----  हमारा यह तोड़ा मरोड़ा हुआ इतिहास यह नहीं बताता कि वर्ष 1000 AD की भारत की जनसँख्या 15 करोड़ से घट कर वर्ष 1500 AD में 10 करोड़ क्यों रह गयी थी ?
        के. एस. लाल द्वारा उनकी पुस्तक मध्यकालीन भारत में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि, उन्होंने दावा किया है कि 1000 CE और 1500 CE के बीच हिंदुओं की जनसंख्या में 80 करोड़ की कमी हुई.
       विश्व डेमोग्राफिक आंकड़ों के अनुसार --लगभग 300 ईसा पूर्व, भारत की आबादी 100 मिलियन और 140 मिलियन के बीच थी। 1600 में भारत की जनसंख्या लगभग 100 मिलियन थी। अर्थात 300 ईसा पूर्व से 1600 सीई तक भारत की जनसंख्या अधिक या कम स्थिर थी |
  -----जबरन धर्म परिवर्तन,  बलात्कार , कत्लेआम,  कम उम्र के लड़कों का हिजड़ा बनाया जाना, हिन्दू महिलाओं, लड़कियों को जबरन हरम में रखना आदि भयावह मुख्य कारण हैं, जिनका पूरा विवरण किसी इतिहासकार ने कभी नहीं दिया |
------इतिहासकार  'विल दुर्रांत' का तर्क है कि इस्लाम हिंसा के माध्यम से फैलाया गया था |
-----सर जदुनाथ सरकार का कहना है कि कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारतीय हिन्दुओं के खिलाफ एक व्यवस्थित जिहाद इस हद तक छेड़ रखा है |
-----हिंदू ऋषि पद्मनाभ ने अपने कान्हादादे प्रबंध 1456 ई. में 1298 ई. के गुजरात के मुस्लिम आक्रमण की कहानी का वर्णन किया है :----जीतने वाली सेना गांवों को जला देती थी, भूमि तबाह कर देती थी, लोगों के धन को लूटा, ब्राह्मणों और बच्चों और महिलाओं के सभी वर्गों को बंदी में लिया,अपने साथ एक चलती जेल लेकर चलते थे, और सारे कैदियों को चापलूस दासों में परिवर्तित कर दिया.
अबुल हसन उत्बी  फारुखी, महमूद गजनबी के सचिव, ने तारीख-इ-यामिनी में 11 वीं सदी में लिखा है----थानेसर में काफिरों का खून इतनी अधिकता से प्रवाहित होता था कि उसने धारा को बदरंग कर दिया, जो अपनी शुद्धता बरकरार न रख पाया , और लोगों को इसे पीने में असमर्थता होती थी. सुल्तान ने इतनी लूट मचाई जो की गिनती में असंभव थी |
        इस प्रकार महमूद गज़नवी (९९७ ई) से लेकर टीपू सुलतान( १७५०) तक गुलाम वंश, खिलजी ,तुगलक , तैमूर, सैयद, लोधी, मुगलवंश, नादिरशाह, अब्दाली , फर्रुखशियर आदि मुस्लिम आक्रान्ताओं के काल में सभी वर्णों के हिन्दुओं का लाखों की संख्या में नियमित क़त्ले आम, स्त्रियों से वलात्कार, ह्त्या आदि--- स्त्रियों, लड़कियां ,पुरुषों, बच्चों को गुलाम बनाकर विदेशी मंडियों में विक्रय एवं स्वयं के हरम में रखना एवं घरों में दासों का काम में लेना,  हिजड़ा बनाना, मुस्लिम बनाना, शूद्र, कामगार, दास, श्रेणियों में रखना नियमित, एवं हरमों में लाखों हिन्दू औरतों को रखना ...प्रायोजित कृत्य थे | अमीर  खुसरो के अनुसार " तुर्क जहाँ से चाहे हिंदुओं को उठा लेते थे और जहाँ चाहे  बेच देते थे।  गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी सैंकड़ों हिन्दू  गुलाम हुआ करते थे ।

      इब्नबतूता " लिखते हैं की क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी, कंधार, काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल, इराक और चीन से भी गुलाम लाकर बेचे जाते थे।

        फ़िरोज़ शाह तुगलक -- के पास 180000 गुलाम थे जिसमे से 40000 इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे।  तैमूर लंग --ने दिल्ली पर हमले के दौरान 100000 गुलामों को मौत के घाट उतरने के पश्चात , 2 से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया। बलबन  द्वारा राजाज्ञा के अनुसार - 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उतार दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लो, इसप्रकार  शहर के शहर हिन्दुओं से खाली कर दिए गए |अलाउद्दीन ख़िलजी ---- कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में उसने उसके गुलमखाने में 50000 लड़के थे और 70000 गुलाम लगातार इमारतें बनाने का काम करते थे। अकबर बहुत महान थे चित्तोड़ में इन्होने 30000 काश्तकारों और 8000 राजपूतों को मार दिया या गुलाम बना लिया, एक दिन 2000 कैदियों का सर कलम किया । इसके हरम में 5000 महिलाएं थीं | शाहजहाँ --के राज में कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उतर जाओ।  इसके हरम में सिर्फ 8000 औरतें थी। औरंगज़ेब-- तो बस जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था।  काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। टीपू सुल्तान ने कुर्ग में रहने वाले  70000 हिन्दुओं को मुसलमान बनाया था।
४.एक अन्य विशिष्ट कारण --- शिक्षा व धार्मिक स्थानों का नाश---
 -------वर्ष 497 AD से 1197 AD तक भारत में एक से बढ़ कर एक विश्वविद्यालय हुआ करते थे, जैसे तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जगदाला आदि---नालंदा विश्वविद्यालय में ही 10000 छात्र, 2000 शिक्षक तथा नौ मंज़िल का पुस्तकालय हुआ करता था जहाँ विश्व के विभिन्न भागों से पढने के लिए विद्यार्थी आते थे।
------ ये सारे के सारे मुग़ल आक्रमणकारियों ने ध्वस्त करके जला दिए। बल्कि पूजा पाठ पर सार्वजानिक और निजी रूप से भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया।


        ---क्रमशः  भाग तीन–-- हिन्दू धर्म को जिन्दा कैसे रखा गया --



 

कोई टिप्पणी नहीं: