ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 24 सितंबर 2014

श्याम स्मृति- दुर्गा देवी रहस्य ...डा श्याम गुप्त....

                     ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



श्याम स्मृति- दुर्गा देवी रहस्य ...
महादेवी की वन्दना करते हुए त्रिदेव----ब्रह्मा, विष्णु, महेश एवं ऋषि गण...
  
                           महादेवी दुर्गा  को तीन महा-शक्तियों --महाकाली, शक्ति की देवी...महालक्ष्मी ,धन-संमृद्धि की देवी तथा महासरस्वती, विद्या ज्ञान की देवी ....का  सम्मिलित अवतार कहा जाता है  |

          महादेवी दुर्गा समस्त दानवों, असुरों दुष्टों दुष्टता के विनाश का कारण बनती हैं...|  
      इस तथ्य का तात्विक अर्थ है कि जब जब समाज में फैले अनाचार, असुरता आदि के विनाश की आवश्यकता होती है तो वे सभी व्यक्ति विद्वान् जिनके पास धन बल है...शक्ति है एवं वुद्धि ज्ञान का बल है सभी को  समाज से बुराई को दूर करने हेतु संगठित होकर कार्य करना चाहिए |
          भगवान राम ने रावण पर विजय से पूर्व इसी महाशक्ति की आराधना की थी | इसका तत्वार्थ है कि सर्व-शक्तिमान भी जब तक प्रकृति -शक्ति से नहीं जुड़ते ..विजयश्री उन्हें प्राप्त नहीं होती |
 

कोई टिप्पणी नहीं: