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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 27 मार्च 2013

कैसी रंग तरंग ??????????... डा श्याम गुप्त ...

                                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                                     सूनी सब गलिया पडीं,अब कित रंग तरंग |
                            बस कविता औ ब्लॉग पर, दिखते होली-रंग ||  


बाट  जोहता सुबह से, कोई तो आजाय |
होरी है कहता हुआ, मुख पे रंग लगाय |


                              नल में पानी है नहीं, कैसे रंग घुल पाय  |
                              सूखे सूखे ही चलो अब  रंग लेउ  उड़ाय |


 घर से निकले सोचते, लौटें भीगे अंग |
 अपने अपने  मस्त सब,लौटे हम बेरंग |

                                                घूरत ही पूरे भये, तुरत बीस सेकिंड |
                                अब रंग कैसे डालते, कानूनी प्रतिबन्ध | 

घूरन की का जरूरत, दो क्षण रंग उड़ाय |
 हाथ जहां चाहे परे,  बस रंग देऊ चढ़ाय |


10 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन सुंदर रचना,,,
आपको होली की हार्दिक शुभकामनाए


Recent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
आपकी पोस्ट कल के चर्चा मंच पर है

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन सुंदर रचना,,,
आपको होली की हार्दिक शुभकामनाए,,,

Recent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रंग भरे सबकी दुनिया में..

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद --धीरेन्द्र जी,दिलबाग,मदन नमोहन जी ,प्रतिभा जी एवं पांडे जी ...

kavita verma ने कहा…

sundar rachna..

Kunwar Kusumesh ने कहा…

होली की बधाई

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद कविता जी एवं कुंवर कुसुमेश जी ....

virendra sharma ने कहा…

बढ़िया अंग लगाया सजन तूने होरी पर ,अंग अंग मुस्काया सजन इस होरी पे ,बेहतरीन व्यंग्य विनोद अव्वल दर्जे की दोहावली ,सांगीतिक अर्थ पूर्ण रूपकात्मक तत्व लिए है यह पोस्ट .शुक्रिया आपका साइंस ब्लॉग पर टिपण्णी के लिए .

Virendra Kumar Sharma4/1/13, 11:09 PM
बेशक डॉ श्याम गुप्त जी सभी सितारे महाविस्फोट के बाद ही पैदा हुआ हैं लेकिन उत्तरोत्तर एक के बाद दूसरी फिर तीसरी ....पीढियां आईं हैं।सितारे कुदरत के सबसे बड़े रासायनिक कारखाने हैं जो उत्तरोत्तर भारी से और भारी तत्व बनाते चलतें .इसीलिए कुछ अपेक्षाकृत भारी सितारे अपनी जीवन लीला भुगताने के बाद एक प्रबल विस्फोट के साथ फट जाते हैं .इस फटन से भारी तत्व आसपास फ़ैल जाते हैं अवशेष एक बार फिर तेज़ी से सिकुड़ता हुआ न्युट्रोन स्टार भी बन सकता है अन्तरिक्ष का अंध कूप भी .यह इस पर निर्भर करता है जीवन लीला भुगताने बोले तो ईंधन हजम कर जाने पर उसका भार था कितना सौर भार के बरक्स .बहर सूरत शुक्रिया ज़नाब की टिपण्णी के लिए .

shyam gupta ने कहा…

चलिए ..इस बहाने आप तशरीफ़ तो लाये ..

वास्तव में उपर्युक्त आलेख का जो वाक्य टिप्पणी में उद्धृत किया गया है वह भ्रामक एवं सुगठित वाक्य नहीं है अतः ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरी पीढी 'जो बिगबेंग के बाद पैदा हुई ..' वस्तुतः बिगबेंग का नाम आने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि सभी सितारे बिगबेंग के बाद ही बने हैं ...सिर्फ पीढी लिखने से ही काम चलता है..
----यह अंग्रेज़ी आलेख की हिन्दी में अस्पष्ट नक़ल का परिणाम है..